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What are common Intentions and Common objects? सामान्य आशय एवं सामान्य उद्देश्य क्या है ?

 What are common Intentions and Common objects?
सामान्य आशय एवं सामान्य उद्देश्य क्या है ?




Common Intention:
It is defined under section 34 of the Indian Penal Code, 1860, According to section 34-

Section 34- Acts done by several persons in furtherance of common intention (सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किये गये कार्य):

When a criminal act is done by several persons in furtherance of the common intention of all, each of such persons is liable for that act in the same manner as if it were done by him alone.

जबकि कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सबके सामान्य आशय को अग्रसर करने में किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य अकेले उसी ने किया हो।

Principle of Joint Liability (संयुक्त दायित्व का सिद्धान्त) -

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 में कुछ ऐसे उपबन्ध है जो कि ऐसे व्यक्ति के दायित्व को निर्धारित करते हैं जो दूसरे अन्य लोगों के साथ मिलकर कोई अपराध करता हैं। इस समबन्ध में निम्नलिखित धाराओं का अवलोकन करना आवश्यक हैः-
धारा 34 से 38, धारा 114, 149, 396 तथा 460। 

Section 34- Essential Ingredients (आवश्यक तत्व) 

  • Some Criminal Act (एक आपराधिक कृत्य)
  • Criminal Act Done by such persons in furtherance of the common intention of all of them (आपराधिक कृत्य ऐसे व्यक्तियों द्वारा सबके सामान्य आशय को अग्रसर करने हेतु किया गया हों)
  • Criminal Act done by more than one person (आपराधिक कृत्य एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया गया हों)
  • Common intention in the sense of a pre-arranged plan between such persons (ऐसे व्यक्तियों के बीच सामान्य आशय पूर्व निर्धारित योजना के अर्न्तगत होना चाहिये
  • Participation in some manner in the act constituting the offence by the persons sought to be prosecuted (आपराध के सभी कथित अभियुक्तो का किसी न किसी प्रकार से सम्मिलित होना आवश्यक है)
  • Physical Presence at the time of commission of crime of all the persons; but Physical Presence is not necessary in some cases { अपराध घटित होते समय सभी व्यक्तियों की शारीरिक उपस्थिति, (परन्तु सभी व्यक्तियों की सभी मामलों में शारीरिक उपस्थिति सदैव आवश्यक नही है)}

   
गोरा चन्द गोपी, 1860 B.N.R. 443
सर बार्नीस पीकाक ने कहा था कि अब अनेक व्यक्तियों का एक गुट जो सामान उद्देश्य के लिये संगठित हो, वैधानिक या अवैधानिक तथा उसमें के एक दूसरो के ज्ञान और सहमति के बिना एक अपराध करता है, दूसरे अपराध में शामिल नही होगें जब तक कि कार्य किसी प्रकार सबके सामान्य आशय अग्रसर करने हेतु न किया गया हों।

गणेश सिंह बनाम रामपूजा, (1869)3 V.L.R. 44(PC)
इस मामलें में प्रिवी कौंसिल ने निम्नलिखित मत व्यक्त किया था जब पक्षकार सामान्य प्रयोजन से सामान्य उद्देश्य को निष्पादित करने जाते है, तो प्रत्येक व्यक्ति सामान्य उद्देश्य को अग्रसरित करने तथा उसके निष्पादन हेतु हर दूसरे व्यक्ति द्वारा किये गये कार्य के लिये उत्तरदायी है, क्योकि प्रयोजन सामान्य हैं अतः उत्तरदायित्व भी सामान्य होना चाहिये।


Section 149- Every member of unlawful assembly guilty of offence committed in prosecution of common object (विधिविरुद्ध जमाव का हर सदस्य, सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में किए गए अपराध का दोषी) –

If an offence is committed by any member of an unlawful assembly in prosecution of the common object of that assembly, or such as the members of that assembly knew to be likely to be committed in prosecution of that object, every person who, at the time of the committing of that offence, is a member of the same assembly, is guilty of that offence.

यदि विधिविरूद्व जमाव के किसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में अपराध किया जाता है, या कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसका किया जाना उस जमाव के सदस्य उस उद्देश्य को अग्रसर करने में सम्भाव्य जानते थे, तो हर व्यक्ति, जो उस अपराध के किये जाने के समय उस जमाव का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा।

ऊपरी तौर पर सामान्य आशय तथा सामान्य उद्देश्य एक जैसे प्रतीत होते है परन्तु इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है। इस अन्तर को निम्न लिखित शीर्षकों के अर्न्तगत स्पष्टतः समझा जा सकता है- 

1. सामान्य आशय 

2. कार्य में सक्रिय भागीदारी

3. सदस्य संख्या

4. व्यापकता

5. अपराध का सृजन

6. अपराध में सहकार्य करना






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